गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

पहाड़ की चोटी पर समुद्र


उत्तराखंड की भारत-चीन सीमा पर फौजी जिंदगी के अलावा प्रकृति का एक अद्भुत चमत्कार भी है। पहाड़ की १७ हजार फीट ऊंची चोटी पर समुद्र। सौ करोड़ साल पुराना यह समुद्र पलक-पांवड़े बिछाए लफथल में आपका इंतजार कर रहा है। मगरमच्छ, कछुआ, घोंघा, सीप, केंचुआ, व्हेल, शार्क, सांप और स्टार फिश और समुद्री जीवों की अनगिनत किस्में आपके स्पर्श को बेताब हैं। अरे हां, आपकी पंसदीदा मछलियों की ढेरों किस्में भी लफथल में जहां-तहां बिखरी हैं। मगर ध्यान रहे ये मछलियां खाई नहीं जा सकती हैं क्योंकि ये करोड़ों वर्ष बासी हैं और आपके इंतजार में सूखकर पत्थर हो गई हैं।

पहाड़ की चोटी पर समुद्री जीव? चौंकिएगा नहीं। उत्तराखंड के चमोली जनपद स्थित लफथल की चोटी पर फैली समुद्री जीवों की लंबी श्रृंखला दरअसल जीवाश्मों की शक्ल में मौजूद हैं। काबिलेगौर है कि आज जहां हिमालय है, पांच करोड़ साल पहले वहां टेथिस सागर हुआ करता था। लफथल वो इलाका है जो उस वक्त टेथिस सागर की तलहटी में था। टेथिस से हिमालय बनने की प्रक्रिया में तब प्रागैतिहासिक काल की नदियों द्वारा तात्कालिक महाद्वीपों से लाई गई मिट्टी की तहों में समुद्री जीव दब गए। पृथ्वी की गर्मी और दबाव से वो धूल की परतें चट्टानों में बदल गईं। पृथ्वी के लगातार पड़ते बलों ने इन चट्टानों को पहाड़ की चोटी तक पहुंचा दिया। यही कारण है कि इन चट्टानों में दबे समुद्री जीवों के जीवाश्म लफथल की चोटी पर शान से विराजमान हैं।

उत्तराखंड के मानचित्र पर लफथल इलाका भले ही उपेझित पड़ा है मगर टेथिसिसन पर्वत श्रृंखला की इस चोटी पर सौ करोड़ से पांच करोड़ साल पुराना समुद्री इतिहास बेहिसाब बिखरा पड़ा है। जीवाश्म विग्यानियों के लिए तो यह चोटी खुली प्रयोगशाला है। लफथल पहुंचकर यह देखना भी सचमुच कौतूहल भरा है कि समुद्र में जब हिमालय की शुरुआत हुई थी तो उस वक्त कैसा रहा होगा यहां के जीवों का जीवन। लफथल में ५० करोड़ साल पुराने रीढ़ वाले (कोन्ड्रोन प्रजाति) के समुद्री जीवों के अवशेष भी हैं तो २५ करोड़ साल पुराने मछली के जीवाश्म भी।

१३ से १७ करोड़ साल पुराने शिफेलोपोडा प्रजाति के समुद्री जीवों को पत्थर में निहारना भी कम रोमांचकारी नहीं है। शिफेलोपोडा प्रजाति के जीव तो यहां यह भी बताते हैं कि १३ करोड़ वर्ष पूर्व टेथिस सागर की गहराई १००० मीटर रही होगी। वाडिया भू-विग्यान संस्थान के जीवाश्म विग्यानी डॉ आर जे आजमी कहते हैं कि लफथल तो वो जगह है जहां हिमालय की उत्पत्ति और समुद्र के आने-जाने की कहानी जन्म लेती है। समय के साथ पत्थर बन गए समुद्री जीवों के जीवाश्मों में पूरे एक जमाने का रहस्य छिपा हुआ है। लफथल की शक्ल में मिले कुदरत के इस नायाब तोहफे को उत्तराखंड और केंद्र सरकार भले ही पूरी तरह से भूल गए हैं मगर बावजूद इसके यहां फैले अवशेष समुद्र विग्यान की एक पूरी कहानी बयां करते हैं।

दरअसल, समुद्र को समझने की एक खुली खिड़की है लफथल। पांच करोड़ साल पहले तक कैसा रहा होगा टेथिस सागर? समय के साथ क्या बदलाव आए? पानी के खारेपन और तापमान ने समुद्री जीवों को कितना प्रभावित किया इसका पूरा ब्यौरा भी लफथल में मौजूद है। यही नहीं, विभिन्न प्रजाति के समुद्री जीव बताते हैं कि समुद्र की गहराई किस काल में क्या रही होगी। जीवों में शुरूआती लक्शण क्या थे। पानी में नमक और रोशनी कितनी पहुंच रही थी तब। सबकुछ लफथल की चोटी पर विराजमान है। वाडिया भू-विग्यान संस्थान के ही जीवाश्म विग्यानी बी एन तिवारी कहते हैं कि लफथल में मिलने वाले जीवाश्म हमारे पुरखों की डायरी हैं। डायरी को पढ़ते हुए हम समुद्र का इतिहास तो जान ही रहे होते हैं हिमालय के गुजरे कल से भी रू-ब-रू होते जाते हैं। डॉ. तिवारी के कथन को जीवाश्म विग्यानी किशोर कुमार कुछ यूं आगे बढ़ाते हैं- समुद्र की तलहटी कैसे पहाड़ की चोटी में तब्दील हो गई यह अपने आप में चौंकाने वाली बात है। समय से साथ पत्थर बन गए जीवाश्मों में एक पूरा समुद्री संसार छिपा हुआ है।

लफथल में अतीत के समुद्र के दर्शन करना जहां अपने आप में रोमांच पैदा करता है वहीं उत्तराखंड में प्रकृति के इस अद्भुत चमत्कार से बेरुखी भी कम चौंकाने वाली नहीं है। दुनियाभर में लफथल जैसी जगहें जहां भी हैं वहां की सरकारें इन्हें सहेजे हुए हैं। दुर्भाग्य है कि प्रागैतिहासिक महत्व वाली जगह उत्तराखंड में सूनी पड़ी हैं। पर्यटन विभाग के मानचित्र में तो दूर स्थानीय लोग तक इस जगह से बेखबर हैं।

2 टिप्‍पणियां:

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

Anita kumar ने कहा…

बहुत ही ज्ञानवर्धक पोस्ट है, आभार,आगे की पोस्ट का इंतजार रहेगा